दिनांक: ४ जनवरी,छत्रपति संभाजीनगर: हमारे देश की हजारों साल की संस्कृति को चंद चुनाव और दो-चार लोग नष्ट नहीं कर सकते। ये चल रहा है और चलता रहेगा । इस देश में एक आत्मा है जिसे कोई नहीं मार सकता, और ये जीवित आत्मा ही सच्चा हिंदुस्तान है, ये विचार पद्मभूषण जावेद अख्तर ने इस मौके पर व्यक्त किये।
दुनिया भर के दर्शकों के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्मों को पेश करने वाले 9वें अजंता एलोरा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में गीतकार और संवाद लेखक जावेद अख्तर का आज निर्देशक जयप्रद देसाई ने साक्षात्कार लिया, इस मौके पर गीतकार जावेद अख्तर बोल रहे थे।
इस मौके पर जावेद अख्तर ने कहा, साठ के दशक की फिल्मों में टैक्सी ड्राइवर, रिक्शा चालक, मजदूर, शिक्षक, प्रोफेसर, वकील हीरो होते थे। हालांकि, अब तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। आज के अभिनेता अमीर परिवारों से हैं और कुछ नहीं करते। आज का अभिनेता भारत के बजाय स्विट्जरलैंड के बारे में सोच रहा है। यह समय अमीरों के लिए फिल्में बनाने का है। हमारी फिल्मों में राजनीतिक विषय नहीं दिखते। वैसे ही हमारी फिल्मों में अब सामाजिक मुद्दे नजर नहीं आते, मजदूर वर्ग आज की फिल्मों से गायब हो गया है।
इससे पता चलता है कि हम स्वार्थी हो गए हैं और दूसरी ओर हमें देश की बहुत परवाह है। क्या पचास साल पहले के लोग इस देश से प्यार नहीं करते थे? क्या पहले देश के लिए जेल जाने वाले लोगों को इस देश से प्यार नहीं था? उन्हें देश से प्यार था, लेकिन उन दिनों इतने नाटक नहीं होते थे। अब लोग जहां चाहें वहां जा रहे हैं।
अख्तर ने आगे कहा कि, ‘आर्टिकल 15’ पिछले 30-40 सालों में बनी सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है। यह खुशी की बात है कि, यह फिल्म इस अजंता एलोरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की जा रही है और हर किसी को यह फिल्म देखनी चाहिए। साठ के दशक में ऐसी फिल्में नहीं बनती थीं ।
इस दुनिया में जो कुछ भी होता है उसके पीछे अर्थशास्त्र है। हमें बताया जाता है कि भारत एक समृद्ध देश है और उसने काफी प्रगति की है। और इसके साथ ही हमें ये भी बताया गया है कि इस देश के 80 करोड़ नागरिकों को 5 किलो अनाज देना है। जावेद अख्तर ने दर्शकों से पूछा कि ये किस तरह की प्रगति है?
अख्तर ने कहा, भाषा हमेशा हमारे साथ रहती है। भाषा में हमारी संस्कृति झलकती है। इसका मतलब यह है कि जब हम भाषा छोड़ते हैं, तो हम अपनी जड़ें छोड़ देते हैं। भाषा एक दूसरे से बात करने के लिए थी लेकिन आज भाषा के कारण बोलचाल बंद करने का समय आ गया है।
मैं आज पहली बार एलोरा गया। मैं इस सारे वैभव से बहुत अभिभूत था। आज मुझे आश्चर्य हुआ कि, मैं अब तक क्यों नहीं आया। जिन लोगों ने यह काम किया है उन्होंने पैसे के लिए नहीं किया होगा। किसी चीज़ को कार्यान्वित करने के लिए उसमें बहुत अधिक विश्वास की आवश्यकता होती है। खासकर यह काम जिद्द के साथ किया जाता है, अगर उस जिद्द का हजारवां हिस्सा भी हमारे पास आ जाए तो हम इस देश को स्वर्ग बना सकते हैं। इसे बनाने वालों की पीढ़ियों ने इसके लिए काम किया है और इसे प्रेम, परंपरा, संस्कृति और प्रतिबद्धता से बनाया गया है। जावेद अख्तर ने कहा कि मैं दोबारा आऊंगा और अपना अजंता की खूबसूरती देखना चाहता हूं।
इस अवसर पर प्रसिद्ध हिंदी फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा, समन्वय समिति के अध्यक्ष नंदकिशोर कागलीवाल, एम.जी.एम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विलास सपकाल, महोत्सव निदेशक अशोक राणे, महोत्सव कलात्मक निदेशक चंद्रकांत कुलकर्णी, महोत्सव आयोजक नीलेश राऊत, लेखक दासू वैद्य और सभी संबंधित उपस्थित थे।